Thursday, March 9, 2017

दुख से अपना गहरा नाता

दुख से अपना गहरा नाता,
 सुख तो आता है, और जाता.
 दुख ही अपना सच्चा साथी,
 हरदम ही जो साथ निभाता.

 जब से जग में आंखें खोली,
 सुनी नहीं कभी मीठी बोली.
 दिल को तोड़ा सदा उसी ने,
 जिसको भी समझा हमजोली.

 जिम्मेदारी का बहुत सा, 
बोझ उठाया कांधे पर. 
जिसको भी दिया सहारा.
 मार चला वो ही ठोकर.

 तेरा मेरा कभी न सोचा,
 सारे जग को अपना माना.
 अपनी खुशियों से बढ़कर,
 औरों की खुशियों को जाना.

 हाय नियति! फ़िर भी तूने,
 कदम कदम पर बोये कांटे.
 उन्होंने मुझको दुख बांटा,
 जिनके दुख थे मैंने बांटे.

 किंतु दुख से नहीं डरूंगा, 
यही मेरा शाश्वत प्रण है.
 हर बाधा को दे चुनौती,
 जीतना मुझको जीवन रण है. .
                                                               --  प्रदीप बहुगुणा 'दर्पण '



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