Saturday, August 13, 2011

बोतल पी जाने के बाद

दीवारें कर दी खडी, आंगन रहा न शेष. जाति धर्म के नाम पर, बंटा हमारा देश. ......... दर्पण



मेरे मौहल्ले में मुझको, कोई जानने वाला न था.
पर मैं तो मशहूर हो गया, बोतल पी जाने के बाद.
ऐरे गैरे कामों से कितना ज्यादा डरता था मैं ,
सारा डर काफ़ूर हो गया, बोतल पी जाने के बाद .
बिता रहा था मैं जिंदगी संग उसूलों के अपने,
पर कितना मजबूर हो गया, बोतल पी जाने के बाद.
दुनियादारी की बातों पर , विश्वास मुझें भी पूरा था,
लेकिन मैं मगरूर हो गया, बोतल पी जाने के बाद .
समझौता जमीर से अपने, कभी मुझें मंजूर न था,
सब कुछ तो मंजूर हो गया, बोतल पी जाने के बाद.
बसा हुआ था दिल में 'दर्पण', कितने सारे लोगों के,
खुद से भी अब दूर हो गया, बोतल पी जाने के बाद .
प्रदीप बहुगुणा 'दर्पण'

4 comments:

DURGESH said...

BEHAD ACHHA LIKHTE HAIN SIR JI AAP!

डॉ. मोनिका शर्मा said...

कुछ अलग सी रचना .....

Pradeep Bahuguna Darpan said...

Bahut Bahut Dhanywad Monika ji, ....

Anonymous said...

Bahut hi sundar rachna...