Wednesday, November 2, 2011

मेरी जीवनसंगिनी

उसकी हर एक सांस में, बस मेरे लिये दुआ है.
तन-मन-धन-जीवन जिसका, अर्पण मुझे हुआ है.
जीवन के हर कठिन मोड़ पर देती मुझे सहारा है उसको वो प्यारा लगता है,जो कुछ मुझको प्यारा है.
ऐसी जीवनसंगिनी मेरी, जिसका प्यार अमर है.
उसे समर्पित जीवन मेरा, सब उस पर न्योछावर है.

मेरी एक छींक पर जिसको, भारी चिंता हो जाती है.
घर समय पर न लौटूं तो, वो घबरा ही जाती है.
मेरे लिए सोचती हरदम, रहता मेरा ध्यान उसे.
मुझसे भी बढ़कर है वो, किंतु नहीं अभिमान उसे.
जिसके प्रेम को पाकर मेरा, जीवन गया सुधर है.
उसे समर्पित जीवन मेरा, सब उस पर न्योछावर है.

जिसकी हर धडकन में मैं, ब्रह्मनाद सा बजता हूँ.
बन सिंदूर की लाली मैं ,जिसकी मांग में सजता हूँ.
मेरी भी सांसे उसके ही नाम से झंकृत होती हैं.
जीवन की मरुभूमि उसके, प्रेम से सिंचित होती है.
जिसे देखकर मन में उठती, आशाओं की लहर है.
उसे समर्पित जीवन मेरा, सब उस पर न्योछावर है.

............... प्रदीप बहुगुणा 'दर्पण'