ओ गीत प्रणय के गाने वालों,दिल से दिल लगाने वालों.
प्यार मौहब्बत के चक्कर में,अपना वक्त बिताने वालों.
मेरे गीतों में झूठा,श्रिंगार नहीं मिल पायेगा.
चौराहों पर बिकने वाला,प्यार नहीं मिल पायेगा.......
भूखे पेटों से जो निकली,वो आह है मेरी कविता में
मौत से लड़्कर भी जीने की चाह है मेरी कविता में .
मानव को मानव से जोडे वो राह है मेरी कविता में ,
जीवन के दर्शन की पूरी थाह है मेरी कविता में
यहां झूठे सच्चे शब्दों का व्यापार नहीं मिल पायेगा.
चौराहों पर बिकने वाला प्यार नहीं मिल पायेगा...
चौराहे पर लिये लकुटि,कबीरा को मैने पाया है.
कान्हा की रसधार में डूबी मीरा को भी गाया है.
प्रेमचंद के गांव में मैने घर अपना बसाया है.
रोते हुए चेहरों से रिसता दुख और दर्द मिटाया है.
यहाँ स्वार्थ और लोलुपता का संसार नहीं मिल पायेगा.
चौराहे पर बिकने वाला प्यार नहीं मिल पायेगा....
Friday, December 31, 2010
Sunday, December 19, 2010
कुछ लिखा जाता नहीं
मायने अच्छाई के इस शहर में कुछ और हैं,
अच्छा है कि मुझको यहां अच्छा कहा जाता नहीं.
सोचता हूं कि चुप रहूं मैं भी उन सबकी तरह,
पर देखकर रंगे जमाना चुप रहा जाता नहीं
दर्द अपना हो तो मैं चुपचाप सह लूंगा उसे,
दर्द बेबस आदमी का पर सहा जाता नहीं...
भूख से बच्चे बिलखते बिक रही हैं बेटियां,
चैन से दो रोटियां भी कोई खा पाता नहीं .
शोर चारों ओर है तो चैन कैसे पाऊंगा,
नींद का कतरा नयन में एक ठहर पाता नहीं.
मंच पर चढ़्कर वो देखो,खींचते मुझको भी हैं.
पर आदमी से हो अलग मुझसे जीया जाता नहीं.
चाहता हूँ गीत लिखना मैं भी तो श्रिंगार के.
दर्द में डूबी कलम से कुछ लिखा जाता नहीं ....
अच्छा है कि मुझको यहां अच्छा कहा जाता नहीं.
सोचता हूं कि चुप रहूं मैं भी उन सबकी तरह,
पर देखकर रंगे जमाना चुप रहा जाता नहीं
दर्द अपना हो तो मैं चुपचाप सह लूंगा उसे,
दर्द बेबस आदमी का पर सहा जाता नहीं...
भूख से बच्चे बिलखते बिक रही हैं बेटियां,
चैन से दो रोटियां भी कोई खा पाता नहीं .
शोर चारों ओर है तो चैन कैसे पाऊंगा,
नींद का कतरा नयन में एक ठहर पाता नहीं.
मंच पर चढ़्कर वो देखो,खींचते मुझको भी हैं.
पर आदमी से हो अलग मुझसे जीया जाता नहीं.
चाहता हूँ गीत लिखना मैं भी तो श्रिंगार के.
दर्द में डूबी कलम से कुछ लिखा जाता नहीं ....
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