Saturday, October 16, 2010

बुखारी का बुखार

बुखारी का बुखार

लगता है अयोध्या मामले पर न्यायालय का निर्णय आने के बाद कई लोगों की राजनीति की दुकान बंद होने के कगार पर है. ऐसे लोग यही सोच रहे हैं कि देश मे कोइ बवाल क्यों नहीं मचा, दंगों की आग क्यों नहीं भड़की, जिस पर राजनीति की रोटियां सेकी जा सकती थी. दिल्ली की जामा मस्जिद के शाही इमाम जनाब बुखारी जी को भी इसी कारण बदहजमी हो गयी है,शायद इसीलिये उन्होंने महज एक सवाल पूछने पर एक पत्रकार को बुरी बुरी गालियां सुनायी और पिटवा भी दिया. दर असल उस बेचारे ने सवाल ही ऐसा पूछ लिया था कि जिसका जबाब बुख़ारी जी जानते तो हैं पर बोल नही सकते.
सच से मुंह छिपाकर अधिसंख्य मुसलमानों को भड़काकर बुख़ारी महोदय अब तक अपनी दुकान चलाते आये हैं . कभी किसी विशेष दल के लिये वोट डालने का फ़तवा जारी करते हैं तो कभी किसी के खिलाफ़ आग उगलते हैं .
और अब जब देश में लगी सांप्रदायिक आग की तपिश उन्हें कम होती नजर आयी तो जनाब का बौखलाना स्वाभाविक ही है. यही कारण हैं कि जहां कट्टरवादी माने जाने वाले हिंदू संगठन और अधिकांश मुस्लिम पैरोकार न्यायालय के फैसले का स्वागत कर रहे हैं , वहीं बूख़ारी जैसे लोग अपनी हरकतों से बाज नहीं आ रहे हैं......

सिमी और आर एस एस को एक जैसा कहने वाले लोग और सेकुलरिज्म का चोला पहनकर राजनीति की दुकान चलाने वालों का इस मुद्दे पर खामोश रहना कई प्रश्न खडे करता है. गनीमत है कि बुख़ारी जी से यह सवाल एक मुस्लिम पत्रकार ने पूछा था, वरना कुछ और भी बुरा हो सकता था.
क्या अब भी आप नहीं मानेंगे कि बुख़ारी जी को ऐसा बुखार हो गया है जिसकी दवा सेकुलर डाक्टरों के पास नहीं हैं ?????

Wednesday, October 6, 2010

मेरा हर दिन होली है.............:........

मेरा हर दिन होली है

मेरा हर दिन होली है , हर रात मेरी दीवाली है.
दिलों का मैं शहजादा हूँ, मेरी जेब भले ही खाली है.
मेरा हर..................
सुख में तो सब हंसते देखे, मैं गम मे भी हंसता हूँ .
महलों मे क्या काम है मेरा मैं दिलों में सबके बसता हूँ .
वही बन गया मेरा जिस पर एक नजर ये डाली है.
मेरा हर............

कोई मुझें चाहे न चाहे मैं तो सबसे प्यार करूं.
फ़ूलों की मुझें चाह नहीं मैं कांटों से श्रिंगार करूं.
दुनिया की इस भीड़्भाड में मेरी पहचान निराली है.
मेरा हर.......

जीवन के दुर्गम मोडों पर कभी न हिम्मत हारा मैं.
जिसका न था कोई सहारा उसका बना सहारा मैं .
मेरा जीवन सबकी अमानत ये मैंने कसम उठा ली है.
मेरा हर.......

Monday, October 4, 2010

विद्यालय और बच्चे

विद्यालय और बच्चे
आज के शैक्षिक ढांचे का सबसे बड़ा विद्रूप यह है कि इतन बड़ा ताम झाम जिन बच्चों के लिए खडा किया गया है, वही बच्चे विद्यालय की ओर आकर्षित नहीं हो पा रहे हैं. तरह तरह के अभियान और योजनाएं चलाने के बावजूद भी अपेक्षित परिणाम सामने नहीं आ रहे हैं. इसके कारणों पर विचार करना आवश्यक है.
किसी भी देश की शिक्षा प्रणाली उसके भविष्य की आधारशिला होती है. विडंबना है की इस बात को सोचे विचारे बिना ऐसी नीतियां बनायी जाती हैं, जो व्यावहारिक रूप से प्रभावी नहीं होती और अगर कोई गुंजाईश होती भी है तो वे भ्रष्टाचार और निकम्मेपन की भेंत चढ़ जाती हैं.
दूसरा पहलू यह भी है की हमारे देश में सभी के लिये समान शिक्षा की व्यवस्था नही है. अमीर और गरीब की शिक्षा, हुजूर और मजूर की शिक्षा, हिंदू और मुसलमान की शिक्षा के रूप में अलग अलग कटघरे बनाकर हमने बच्चों को उनमें कैद कर दिया है.
जरा सोचिए ऐसा करके हम देश को किस दिशा में ले जा रहे हैं.
यदि इस मुद्दे पर हम समय रहते सचेत नहीं हुए तो हमारा भविष्य क्या होगा?
शिक्षा संबंधी सार्थक बहस के लिए आपका स्वागत है.
संपर्क करें--
प्रदीप बहुगुणा 'दर्पण'
09997397038;
09412937875;
www.shabdmanch.blogspot.com

Saturday, October 2, 2010

एक पैगाम बापू के नाम

एक पैगाम बापू के नाम

बापू हम हैरान हैं
चिंतित हैं परेशान हैं
कैसा हिंदुस्तान है ये
कैसा हिंदुस्तान है .
तन पर जिसके खादी है
उनकी कार विदेशी है
चेहरे अपने लगते हैं
पर सरकार विदेशी है
चर्खा तेरा टूट गया
मंत्र स्वदेशी छूट गया
गांव गांव में खुल गयी
मदिरा की दुकान है
कैसा हिंदुस्तान है ये
एक हिंदुस्तान है .

बापू हम हैरान.............:........