Friday, June 15, 2012

दो मुक्तक


         ........1......
तुम्हे जब देखते हैं हम , हमारा दिल  मचलता है .
तुम्हारे दिल में भी शायद हमारा ख्वाब पलता है.
समझते तुम भी सब कुछ हो, समझते हम भी हैं सब कुछ ,
मगर मुंह से न कुछ मेरे न तेरे से निकलता है.
                      ..... 2....
एहसासों की बस्ती में इशारे तो  बेमानी हैं .
जो बातें कह नहीं पाया वही तुमको बतानी हैं .
समझना मत इसे केवल  मेरी कोई नई कविता ,
ये दिल का दर्द है मेरे ,ये तेरी ही निशानी है .
                                 
                                                   --- दर्पण