Thursday, June 16, 2016

विद्यालय और बच्चे

विद्यालय और बच्चे
आज के शैक्षिक ढांचे का सबसे बड़ा विद्रूप यह है कि इतन बड़ा ताम झाम जिन बच्चों के लिए खडा किया गया है, वही बच्चे विद्यालय की ओर आकर्षित नहीं हो पा रहे हैं. तरह तरह के अभियान और योजनाएं चलाने के बावजूद भी अपेक्षित परिणाम सामने नहीं आ रहे हैं. इसके कारणों पर विचार करना आवश्यक है.
किसी भी देश की शिक्षा प्रणाली उसके भविष्य की आधारशिला होती है. विडंबना है की इस बात को सोचे विचारे बिना ऐसी नीतियां बनायी जाती हैं, जो व्यावहारिक रूप से प्रभावी नहीं होती और अगर कोई गुंजाईश होती भी है तो वे भ्रष्टाचार और निकम्मेपन की भेंत चढ़ जाती हैं.
दूसरा पहलू यह भी है की हमारे देश में सभी के लिये समान शिक्षा की व्यवस्था नही है. अमीर और गरीब की शिक्षा, हुजूर और मजूर की शिक्षा, हिंदू और मुसलमान की शिक्षा के रूप में अलग अलग कटघरे बनाकर हमने बच्चों को उनमें कैद कर दिया है.
जरा सोचिए ऐसा करके हम देश को किस दिशा में ले जा रहे हैं.
यदि इस मुद्दे पर हम समय रहते सचेत नहीं हुए तो हमारा भविष्य क्या होगा?
शिक्षा संबंधी सार्थक बहस के लिए आपका स्वागत है.
संपर्क करें-- 
प्रदीप बहुगुणा 'दर्पण' 
09997397038; 
09412937875;
www.shabdmanch.blogspot.com

Friday, May 13, 2016

एक बाल कविता- गोपी और मिठाई


आम पपीता केला लीची 
आडू हिसार और काफल 
अमरूद चुल्लू और खुबानी 
तरह तरह के खाए फल .

इतना खाकर गोपी बोला 
पेट अभी भी भरा न भाई.
टिहरी से सिंगौरी मंगा दो 
अल्मोड़ा से बालामिठाई.
                                        -दर्पण