Friday, June 15, 2012

दो मुक्तक


         ........1......
तुम्हे जब देखते हैं हम , हमारा दिल  मचलता है .
तुम्हारे दिल में भी शायद हमारा ख्वाब पलता है.
समझते तुम भी सब कुछ हो, समझते हम भी हैं सब कुछ ,
मगर मुंह से न कुछ मेरे न तेरे से निकलता है.
                      ..... 2....
एहसासों की बस्ती में इशारे तो  बेमानी हैं .
जो बातें कह नहीं पाया वही तुमको बतानी हैं .
समझना मत इसे केवल  मेरी कोई नई कविता ,
ये दिल का दर्द है मेरे ,ये तेरी ही निशानी है .
                                 
                                                   --- दर्पण 

Saturday, May 12, 2012

सारथी

जीवन   में कुछ  पल आते हैं ,
रह  जाते जो    यादें   बनकर.
पर  कुछ  पल  ऐसे हैं  होते  ,
 संग चलते  हैं  जो जीवन  भर .

जीवन  की  भूलभुलैय्या  में ,
विस्मृत हो  जाता  हर  चेहरा .
लेकिन कुछ  चेहरों का   होता ,
प्रभाव  आकुल मन पर गहरा .

श्रद्धा की मूरत बनकर जो ,
 अंकित होते ह्रदय पटल पर .
कैसे  भूल सकूंगा उनको  ,
जो  बने  सारथी जीवन पथ  पर .    दर्पण    

Sunday, May 6, 2012

जिन्दगी इतनी सस्ती नहीं ..

जिन्दगी को  कुछ  लोग  इतना सस्ता समझ  लेते हैं कि खुदकुशी जैसा कायरतापूर्ण  कदम  उठाने  में भी गुरेज नहीं करते .   कल ही देहरादून  में एक   बी0 एस 0सी0 बायोटेक्नोलोजी  के  छात्र ने केवल  इस  कारण  मौत  को गले लगा लिया कि उसके परिवार वाले उसकी शादी उसकी प्रेमिका से करने के लिए तैयार नहीं थे . वैसे तो इस  तरह  क़ी  घटनाएं  ग़ाहे - बगाहें होती रहती  हैं , लेकिन  एक  होनहार किशोर द्वारा उठाये   गए  इस  कदम  से कई प्रश्न उठ  खड़े हुए हैं .
 ज़रा सोचिये  जिन  मां  बाप  ने   उसे  पैदा किया , पाल  पोस  कर  बड़ा किया , पढाया  लिखाया , मौत  को गले लगाते समय  उसने उनके बारे  में बिलकुल  भी नहीं   सोचा . इतना बड़ा  कदम  उठाने  से  पहले उसे  अपने भाई का भी बहनों  का भी  कोई  ख्याल  नहीं आया ,   जिनके  साथ  उसने  अपना बचपन बिताया ,  जिनके  साथ  हंस  खेलकर  वो बड़ा हुआ  . कहते  हैं प्यार अंधा होता है।  अगर प्रेमिका के प्रति आकर्षण  को ही प्यार मान  लिया  जाए , तो  शायद  प्यार की इससे संकीर्ण   और  स्वार्थपरक   परिभाषा  कहीं  और  नहीं   मिल   सकती . क्या मां  बाप , भाई  बहन  , किसी का भी प्यार उसे नजर  नहीं आया . 
दोस्तों के साथ गुजारे  हुए खुशनुमा पल , मां  के दूध  की मिठास , बाप  की  आँखों में छलकता हुआ  प्यार  का   समंदर आखिर उसे  नजर क्यों नहीं आया।  यकीन  मानिए  कुछ  ही समय  बाद उसकी प्रेमिका  तो निश्चित  रूप  से शादी करके अपना घर बसा  लेगी.  लेकिन  अपने  परिवार का  जो   नुकसान  उसने किया है, उसकी   भरपाई  कभी  नहीं  हो  सकती .
     जिन्दगी  सबसे  बड़ी  नेमत  होती  है, इसे   ख़त्म करने का निर्णय  सचमुच  बेवकूफी ही है. महज  शारीरिक आकर्षण  को प्यार  समझने की भूल  करना , और  फिर अपने पीछे  कई  लोगों को   जीवन  भर का  दंश  देकर चला  जाना . ये  न  तो प्यार  है , और न ही इसमें  बड़प्पन  की  कोई   बात  है.  प्यार  का  असली  आनंद  तो   समझदारी, त्याग  और  जिन्दगी  के  प्रति   सकारात्मक  सोच  में  है। 
                 काश  उस  बेवकूफ  ने  एक  बार  भी   ऐसा सोच  लिया  होता ???
                                   

Tuesday, February 28, 2012

आंखें

इन आंखों की गहराई में,
डूबा दिल दीवाना है.
मस्ती को छलकाती आंखें,
मय से भरा पैमाना हैं.

ये आंखें केवल आंख नहीं हैं ,
ये तो मन का दर्पण हैं .
दिल में उमड़ी भावनाओं का,
करती हर पल वर्णन हैं.

ये आंखे जगमग दीपशिखा सी ,
जीवन में ज्योति भरती हैं.
भटके मन को राह दिखाती,
पथ आलोकित करती हैं.

इन आंखों में डूब के प्यारे,
कौन भला निकलना चाहे.
ये आंखे तो वो आंखे हैं ,
जिनमें हर कोई बसना चाहे.
प्रदीप बहुगुणा 'दर्पण'

Wednesday, February 22, 2012

'प्रेम'पर कुछ दोहे

प्रेम तो है परमात्मा, पावन अमर विचार.
इसको तुम समझो नहीं , महज देह व्यापार.

प्रेम गली कंटक भरी, रखो संभलकर पांव.
जीवन भर भरते नहीं, मिलते ऐसे घाव.

'दर्पण' हमसे लीजिए, बड़े काम की सीख.
दे दो, पर मांगो नहीं, कभी प्यार की भीख.

मन से मन का हो मिलन, तो ही सच्चा प्यार.
मन के बिना जो तन मिले, बड़ा अधम व्यवहार .
... दर्पण