Friday, January 21, 2011

कवि नहीं मैं

क्या लिखता हूँ, क्यों लिखता हूँ.
खबर नहीं मुझको मंज़िल की.
कवि नहीं मैं कविता ही आकर,
कह जाती बातें मेरे दिल की .


2
हमेशा अपनी धुन में ही खोया नजर आता है वो,
अकेले में वो रोता है, कभी खुद सहम जाता है वो.
कोई बड़ा गम दफ़न है, उसके सीने में भी दर्पण,
जो आकर सबके सामने हमेशा मुस्कुराता है वो.