Friday, December 31, 2010

ओ गीत प्रणय के गाने वालों........

ओ गीत प्रणय के गाने वालों,दिल से दिल लगाने वालों.
प्यार मौहब्बत के चक्कर में,अपना वक्त बिताने वालों.
मेरे गीतों में झूठा,श्रिंगार नहीं मिल पायेगा.
चौराहों पर बिकने वाला,प्यार नहीं मिल पायेगा.......

भूखे पेटों से जो निकली,वो आह है मेरी कविता में
मौत से लड़्कर भी जीने की चाह है मेरी कविता में .
मानव को मानव से जोडे वो राह है मेरी कविता में ,
जीवन के दर्शन की पूरी थाह है मेरी कविता में
यहां झूठे सच्चे शब्दों का व्यापार नहीं मिल पायेगा.
चौराहों पर बिकने वाला प्यार नहीं मिल पायेगा...

चौराहे पर लिये लकुटि,कबीरा को मैने पाया है.
कान्हा की रसधार में डूबी मीरा को भी गाया है.
प्रेमचंद के गांव में मैने घर अपना बसाया है.
रोते हुए चेहरों से रिसता दुख और दर्द मिटाया है.
यहाँ स्वार्थ और लोलुपता का संसार नहीं मिल पायेगा.
चौराहे पर बिकने वाला प्यार नहीं मिल पायेगा....

Sunday, December 19, 2010

कुछ लिखा जाता नहीं

मायने अच्छाई के इस शहर में कुछ और हैं,
अच्छा है कि मुझको यहां अच्छा कहा जाता नहीं.

सोचता हूं कि चुप रहूं मैं भी उन सबकी तरह,
पर देखकर रंगे जमाना चुप रहा जाता नहीं

दर्द अपना हो तो मैं चुपचाप सह लूंगा उसे,
दर्द बेबस आदमी का पर सहा जाता नहीं...

भूख से बच्चे बिलखते बिक रही हैं बेटियां,
चैन से दो रोटियां भी कोई खा पाता नहीं .

शोर चारों ओर है तो चैन कैसे पाऊंगा,
नींद का कतरा नयन में एक ठहर पाता नहीं.

मंच पर चढ़्कर वो देखो,खींचते मुझको भी हैं.
पर आदमी से हो अलग मुझसे जीया जाता नहीं.


चाहता हूँ गीत लिखना मैं भी तो श्रिंगार के.
दर्द में डूबी कलम से कुछ लिखा जाता नहीं ....

Saturday, November 13, 2010

बड़ा अगर बनना चाहो तो.....

बड़ा अगर बनना चाहो तो निज लघुता स्वीकार करो.
प्यार अगर पाना चाहो तो तुम भी सबसे प्यार करो
बड़ा अगर बनना चाहो तो.............
सच्चे पथ पर चलने वाले कांटों से कब डरते हैं.
लेकिन हिम्मत हारने वाले तिल तिल कर नित मरते हैं.
अपने मन में आशाओं की नव ऊर्जा संचार करो.
प्यार अगर पाना चाहो तो.................
कमल पुष्प का ध्यान धरो,जो कीचड में मुस्काता है.
भीषण बदबू में रहकर भी मधुर गंध फ़ैलाता है
बुराईयों के दलदल में उस पंकज सा व्यवहार करो.
प्यार अगर पाना चाहो तो....................
धरती की प्यास बुझाने को हिमगिरी ज्यों गलता रहता है.
औरों को राह दिखाने को दीपक भी जलता रहता हैं.
दीपक जैसे बनकर तुम भी पावक से श्रिंगार करो.
प्यार अगर पाना चाहो तो..........
जीवन बोझ नहीं होता, यह तो सुंदर फ़ुलवारी है.
गले लगाकर देखो सबको सारी दुनिया तुम्हारी है.
जीत सको तो दिलों को जीतो दुनिया पर अधिकार करो.
प्यार अगर पाना चाहो तो तुम भी सबसे प्यार करो...........

बड़ा अगर बनना चाहो तो.....

बड़ा अगर बनना चाहो तो निज लघुता स्वीकार करो.
प्यार अगर पाना चाहो तो तुम भी सबसे प्यार करो
बड़ा अगर बनना चाहो तो.............
सच्चे पथ पर चलने वाले कांटों से कब डरते हैं.
लेकिन हिम्मत हारने वाले तिल तिल कर नित मरते हैं.
अपने मन में आशाओं की नव ऊर्जा संचार करो.
प्यार अगर पाना चाहो तो.................
कमल पुष्प का ध्यान धरो,जो कीचड में मुस्काता है.
भीषण बदबू में रहकर भी मधुर गंध फ़ैलाता है
बुराईयों के दलदल में उस पंकज सा व्यवहार करो.
प्यार अगर पाना चाहो तो....................
धरती की प्यास बुझाने को हिमगिरी ज्यों गलता रहता है.
औरों को राह दिखाने को दीपक भी जलता रहता हैं.
दीपक जैसे बनकर तुम भी पावक से श्रिंगार करो.
प्यार अगर पाना चाहो तो..........
जीवन बोझ नहीं होता, यह तो सुंदर फ़ुलवारी है.
गले लगाकर देखो सबको सारी दुनिया तुम्हारी है.
जीत सको तो दिलों को जीतो दुनिया पर अधिकार करो.
प्यार अगर पाना चाहो तो तुम भी सबसे प्यार करो...........

Saturday, October 16, 2010

बुखारी का बुखार

बुखारी का बुखार

लगता है अयोध्या मामले पर न्यायालय का निर्णय आने के बाद कई लोगों की राजनीति की दुकान बंद होने के कगार पर है. ऐसे लोग यही सोच रहे हैं कि देश मे कोइ बवाल क्यों नहीं मचा, दंगों की आग क्यों नहीं भड़की, जिस पर राजनीति की रोटियां सेकी जा सकती थी. दिल्ली की जामा मस्जिद के शाही इमाम जनाब बुखारी जी को भी इसी कारण बदहजमी हो गयी है,शायद इसीलिये उन्होंने महज एक सवाल पूछने पर एक पत्रकार को बुरी बुरी गालियां सुनायी और पिटवा भी दिया. दर असल उस बेचारे ने सवाल ही ऐसा पूछ लिया था कि जिसका जबाब बुख़ारी जी जानते तो हैं पर बोल नही सकते.
सच से मुंह छिपाकर अधिसंख्य मुसलमानों को भड़काकर बुख़ारी महोदय अब तक अपनी दुकान चलाते आये हैं . कभी किसी विशेष दल के लिये वोट डालने का फ़तवा जारी करते हैं तो कभी किसी के खिलाफ़ आग उगलते हैं .
और अब जब देश में लगी सांप्रदायिक आग की तपिश उन्हें कम होती नजर आयी तो जनाब का बौखलाना स्वाभाविक ही है. यही कारण हैं कि जहां कट्टरवादी माने जाने वाले हिंदू संगठन और अधिकांश मुस्लिम पैरोकार न्यायालय के फैसले का स्वागत कर रहे हैं , वहीं बूख़ारी जैसे लोग अपनी हरकतों से बाज नहीं आ रहे हैं......

सिमी और आर एस एस को एक जैसा कहने वाले लोग और सेकुलरिज्म का चोला पहनकर राजनीति की दुकान चलाने वालों का इस मुद्दे पर खामोश रहना कई प्रश्न खडे करता है. गनीमत है कि बुख़ारी जी से यह सवाल एक मुस्लिम पत्रकार ने पूछा था, वरना कुछ और भी बुरा हो सकता था.
क्या अब भी आप नहीं मानेंगे कि बुख़ारी जी को ऐसा बुखार हो गया है जिसकी दवा सेकुलर डाक्टरों के पास नहीं हैं ?????

Wednesday, October 6, 2010

मेरा हर दिन होली है.............:........

मेरा हर दिन होली है

मेरा हर दिन होली है , हर रात मेरी दीवाली है.
दिलों का मैं शहजादा हूँ, मेरी जेब भले ही खाली है.
मेरा हर..................
सुख में तो सब हंसते देखे, मैं गम मे भी हंसता हूँ .
महलों मे क्या काम है मेरा मैं दिलों में सबके बसता हूँ .
वही बन गया मेरा जिस पर एक नजर ये डाली है.
मेरा हर............

कोई मुझें चाहे न चाहे मैं तो सबसे प्यार करूं.
फ़ूलों की मुझें चाह नहीं मैं कांटों से श्रिंगार करूं.
दुनिया की इस भीड़्भाड में मेरी पहचान निराली है.
मेरा हर.......

जीवन के दुर्गम मोडों पर कभी न हिम्मत हारा मैं.
जिसका न था कोई सहारा उसका बना सहारा मैं .
मेरा जीवन सबकी अमानत ये मैंने कसम उठा ली है.
मेरा हर.......

Monday, October 4, 2010

विद्यालय और बच्चे

विद्यालय और बच्चे
आज के शैक्षिक ढांचे का सबसे बड़ा विद्रूप यह है कि इतन बड़ा ताम झाम जिन बच्चों के लिए खडा किया गया है, वही बच्चे विद्यालय की ओर आकर्षित नहीं हो पा रहे हैं. तरह तरह के अभियान और योजनाएं चलाने के बावजूद भी अपेक्षित परिणाम सामने नहीं आ रहे हैं. इसके कारणों पर विचार करना आवश्यक है.
किसी भी देश की शिक्षा प्रणाली उसके भविष्य की आधारशिला होती है. विडंबना है की इस बात को सोचे विचारे बिना ऐसी नीतियां बनायी जाती हैं, जो व्यावहारिक रूप से प्रभावी नहीं होती और अगर कोई गुंजाईश होती भी है तो वे भ्रष्टाचार और निकम्मेपन की भेंत चढ़ जाती हैं.
दूसरा पहलू यह भी है की हमारे देश में सभी के लिये समान शिक्षा की व्यवस्था नही है. अमीर और गरीब की शिक्षा, हुजूर और मजूर की शिक्षा, हिंदू और मुसलमान की शिक्षा के रूप में अलग अलग कटघरे बनाकर हमने बच्चों को उनमें कैद कर दिया है.
जरा सोचिए ऐसा करके हम देश को किस दिशा में ले जा रहे हैं.
यदि इस मुद्दे पर हम समय रहते सचेत नहीं हुए तो हमारा भविष्य क्या होगा?
शिक्षा संबंधी सार्थक बहस के लिए आपका स्वागत है.
संपर्क करें--
प्रदीप बहुगुणा 'दर्पण'
09997397038;
09412937875;
www.shabdmanch.blogspot.com

Saturday, October 2, 2010

एक पैगाम बापू के नाम

एक पैगाम बापू के नाम

बापू हम हैरान हैं
चिंतित हैं परेशान हैं
कैसा हिंदुस्तान है ये
कैसा हिंदुस्तान है .
तन पर जिसके खादी है
उनकी कार विदेशी है
चेहरे अपने लगते हैं
पर सरकार विदेशी है
चर्खा तेरा टूट गया
मंत्र स्वदेशी छूट गया
गांव गांव में खुल गयी
मदिरा की दुकान है
कैसा हिंदुस्तान है ये
एक हिंदुस्तान है .

बापू हम हैरान.............:........

Monday, September 27, 2010

कब तक चुप रहेंगे आप ?

कब तक चुप रहेंगे आप ?
राष्ट्र्मंडल खेलों के आयोजन में भारतीय प्रबंधकों ने भ्रष्टाचार का जो खेल खेला है,उसकी जितनी भी निंदा की जाये वो कम ही है. देश के ग़रीबों के सत्तर हजार करोड रूपयों को पानी की तरह बहाकर सारे विश्व के सामने भारत की जो तस्वीर पेश की गयी है, उससे हमें किसी खेल में मिले न मिले , किंतु भ्रष्टाचार के खेल में तो स्वर्णपदक मिल ही गया है. इसका पूर श्रेय कलमाडी एण्ड कंपनी को जाता है. टीम मैनेजर मनमोहन सिंह तथा विपक्षी दलों के सभी नेत भी बधाई के पात्र हैं ,जिन्होनें कलमाडी की टीम को मौन समर्थन देकर उनका हौसला बढ़ाया है. एम.एस.गिल और शीला दीक्षित को भी इसके लिये विशेष सम्मान दिया जाना चाहिये क्योंकि इन सभी ने देश की नाक कटवाने में कोई कसर नहीं छोडी .
वास्तव में भ्रष्टाचार हमारी रगों में इस कदर लहू की तरह बह रहा है, कि अब हम इस पर गौर ही नहीं करते. यही कारण है कि खेल के नाम पर इतना बड़ा घोटाला होने के बाद भी आम आदमी अभी तक चुप है, जबकि उसकी गाढी कमाई का पैसा झण्डाबरदारों की जेब मे पहुँच चुका है

जरा सोचिए जब देश मंहगाई, आतंकवाद और प्राकृतिक आपदाओं से जूझ रहा हो और खेल के नाम पर भारत की नाक कटवाई जा रही है. खेलगांव मे घूमते आवारा कुत्ते, खराब शौचालय ,धंसी हुई सडकें भ्रष्टाचार की खुली कहानी कह रहें हैं.
फ़िर भी हमारे हुक्मरान अगर बेशर्मी से कह रहे हैं कि सब कुछ ठीक है, तो इसका मतलब यही है कि जनता की आंखों मे धूल झोंकी जा रही है. उस पर भी तुर्रा ये कि हम सब आंख मूंदकर बैठे हैं.
आखिर कब तक चुप रहेंगे आप ?

Sunday, September 26, 2010

Kahar ke bad

Kai dino ke bad ab dhoop dikhayee dee hai. Bijali ke darshan bhi kal se hi ho rahe hain. Bhari kahar ke bad log is trasadi se ubarane ki koshish me lage hain. Yahi hai aadami ki jeevat. Wastav me hum bahut kuchh khone ke bad bhi hum ek bar sab kuchh bhulakar fir se khade uthh jate hain.
Kai log mare ja chuke hain. Hajaron log beghar ho gaye hain. Prakriti ne aisi karvat li hai,ki isse ubarne me kafi samay lagega.
Lekin jeevan thhahrav ka nam nahi hai. Isliye kal ke behtar hone ki ummeed ke sath aaiye fir se ek nai yatra ki shuruwat karen......

Friday, September 17, 2010

Khel me "Khel"

Khel mantri M.S.Gill ke dwara pahalwan Sushil ke guru ke sath jo durvyavahar kiya gaya, usse gill ki khelon ke prati samvedanheenta ka pata chalta hai. Pata nahi loktantra me aise majak kab tak chalte rahenge. Wastav me ye hamare loktantra ki kami hi hai,ki yahan bandaron ke hath me haldi ki gaanth nahi balki poora khet hi saunp diya jata hai.
Is sabke chalte desh ki pratibhaon ko poora samman nahi mil pata. Aise me ya to vah pratibha dam tod deti hhai,ya fir palayan karke kisi doosre desh ki sharan le leti hai. Han.., yadi kisi ne videsh me rahkar koi uplabdhi hasil kar li to ham usko bharatvanshi kahkar jabran usse chipakne lagte hai.
Yah bat keval khelon par hi nahin balki vigyan,kala,sahitya aadi sabhi kshetron par lagoo hoti hai.
Kaisi vidambana hai ki yogya vyaktiyon ka makhaul udaya ja raha hai,aur neta-feta malai chat rahe hain.
Kya kabhi ham inhe sabak sikha payenge?

welcome

vichar Pravah me aapka swagat hai.