Tuesday, December 27, 2011

उसकी ख़बर रखते हैं..

जमाने में हम भी कुछ, अपना असर रखते हैं . नजर पहचान लें सबकी, हम वो नजर रखते हैं. जिसे एक बार अपनाया, भूले से भी हमने तो, वो रक्खे या न रक्खे, हम उसकी ख़बर रखते हैं.

Friday, December 16, 2011

तेरी ही निशानी है.....

एहसासों की बस्ती में , इशारे तो बेमानी हैं . जो बातें कह नहीं पाया , वही तुमको बतानी हैं. समझना मत इसे केवल, मेरी कोई नई कविता, ये दिल का दर्द है मेरे, ये तेरी ही निशानी है. ..... दर्पण

Monday, December 12, 2011

आंखें

इन आंखों की गहराई में, डूबा दिल दीवाना है. मस्ती को छलकाती आंखें, मय से भरा पैमाना हैं. ये आंखें केवल आंख नहीं हैं , ये तो मन का दर्पण हैं . दिल में उमड़ी भावनाओं का, करती हर पल वर्णन हैं. ये आंखे जगमग दीपशिखा सी , जीवन में ज्योति भरती हैं. भटके मन को राह दिखाती, पथ आलोकित करती हैं. इन आंखों में डूब के प्यारे, कौन भला निकलना चाहे. ये आंखे तो वो आंखे हैं , जिनमें हर कोई बसना चाहे. प्रदीप बहुगुणा 'दर्पण'

Monday, December 5, 2011

तुझे कितना सताया है,

तुझे कितना सताया है, तुझे कितना रुलाया है. मेरी सबसे बड़ी गलती कि दिल तेरा दुखाया है. ये आंसू तेरी आंखों के बने मेरे लहू से हैं, तू अब तक जितना रोया है, लहू मेरा बहाया है.. दर्पण