Monday, December 12, 2011

आंखें

इन आंखों की गहराई में, डूबा दिल दीवाना है. मस्ती को छलकाती आंखें, मय से भरा पैमाना हैं. ये आंखें केवल आंख नहीं हैं , ये तो मन का दर्पण हैं . दिल में उमड़ी भावनाओं का, करती हर पल वर्णन हैं. ये आंखे जगमग दीपशिखा सी , जीवन में ज्योति भरती हैं. भटके मन को राह दिखाती, पथ आलोकित करती हैं. इन आंखों में डूब के प्यारे, कौन भला निकलना चाहे. ये आंखे तो वो आंखे हैं , जिनमें हर कोई बसना चाहे. प्रदीप बहुगुणा 'दर्पण'

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