(विनोद गौड़ सेवानिवृत्त बैंक अधिकारी हैं। श्री गौड़ एक अच्छे विचारक, प्रेरक तथा समाजसेवी हैं। हिन्दी और अंग्रेजी दोनों भाषाओं में अपनी कलम का जादू बिखेरते हैं। शब्दमंच के अनुरोध पर चंद्रयान पर लिखी गई इनकी कविता 'अतिथि पन्ने' पर प्रस्तुत है-)
'चन्दा मामा दूर के' ये
कविता हुयी पुरानी जी ,
ढूँढेंगे जब चंद्रयान से ,
तो मिलेंगे नाना नानी भी ।
नहीं करेंगे इंतजार रात का,
दिन भी वहीं बितायें,
दाना पानी कहां तुम्हारा,
"विक्रम'ढूंड के लायें।
'चन्दा मामा दूर के' ये
कविता हुयी पुरानी जी ,
ढूँढेंगे जब चंद्रयान से ,
तो मिलेंगे नाना नानी भी ।
नहीं करेंगे इंतजार रात का,
दिन भी वहीं बितायें,
दाना पानी कहां तुम्हारा,
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विनोद गौड़ |
मामा धरती सूखी तेरी,
हरियाली हम लायेंगे।
इस लोक से उस लोक तक,
प्रेम कुंज उगायेंगे।
कौन तुम्हारे माता-पिता हैं?
नाना-नानी हमें मिलें।
कौन पड़ोसी ग्रह तुम्हारा,
वहां आतंक तो नहीं पले ?
चन्द्र मार्ग से आकर हम,
सूर्य लोक तलाशेंगे।
भोग भूमि से आकर हम,
योग भूमि तराशेंगे ।
सुना गुरुत्व है क्षीण तुम्हारा,
ऊंची कूद लगायेंगे।
गर रूठे हम से मामा जी तो ,
मामी को ले उड़ आयेंगे!
- विनोद गौड़
हरियाली हम लायेंगे।
इस लोक से उस लोक तक,
प्रेम कुंज उगायेंगे।
कौन तुम्हारे माता-पिता हैं?
नाना-नानी हमें मिलें।
कौन पड़ोसी ग्रह तुम्हारा,
वहां आतंक तो नहीं पले ?
चन्द्र मार्ग से आकर हम,
सूर्य लोक तलाशेंगे।
भोग भूमि से आकर हम,
योग भूमि तराशेंगे ।
सुना गुरुत्व है क्षीण तुम्हारा,
ऊंची कूद लगायेंगे।
गर रूठे हम से मामा जी तो ,
मामी को ले उड़ आयेंगे!
- विनोद गौड़
2 comments:
सुंदर अभिव्यक्ति
bahut badhiya! raseeli kavita.
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