Friday, December 31, 2010

ओ गीत प्रणय के गाने वालों........

ओ गीत प्रणय के गाने वालों,दिल से दिल लगाने वालों.
प्यार मौहब्बत के चक्कर में,अपना वक्त बिताने वालों.
मेरे गीतों में झूठा,श्रिंगार नहीं मिल पायेगा.
चौराहों पर बिकने वाला,प्यार नहीं मिल पायेगा.......

भूखे पेटों से जो निकली,वो आह है मेरी कविता में
मौत से लड़्कर भी जीने की चाह है मेरी कविता में .
मानव को मानव से जोडे वो राह है मेरी कविता में ,
जीवन के दर्शन की पूरी थाह है मेरी कविता में
यहां झूठे सच्चे शब्दों का व्यापार नहीं मिल पायेगा.
चौराहों पर बिकने वाला प्यार नहीं मिल पायेगा...

चौराहे पर लिये लकुटि,कबीरा को मैने पाया है.
कान्हा की रसधार में डूबी मीरा को भी गाया है.
प्रेमचंद के गांव में मैने घर अपना बसाया है.
रोते हुए चेहरों से रिसता दुख और दर्द मिटाया है.
यहाँ स्वार्थ और लोलुपता का संसार नहीं मिल पायेगा.
चौराहे पर बिकने वाला प्यार नहीं मिल पायेगा....

1 comment:

Akanksha said...

बहुत बढिया।