Wednesday, November 8, 2017

साँझ से संवाद


नव निशा की बेला लेकर,
साँझ सलोनी जब घर आयी।
पूछा मैंने उससे क्यों तू ,
यह अँधियारा संग है लायी॥
सुंदर प्रकाश था धरा पर,
आलोकित थे सब दिग-दिगंत।
है प्रकाश विकास का वाहक,
क्यों करती तू इसका अंत॥
जीवन का नियम यही है,
उसने हँसकर मुझे बताया।
यदि प्रकाश के बाद न आए,
गहन तम की काली छाया॥
तो तुम कैसे जान सकोगे,
क्या महत्व होता प्रकाश का।
यदि विनाश न हो भू पर,
तो कैसे हो परिचय विकास का॥
दुख के भय से सुख की पूजा,
नफरत से अस्तित्व प्यार का।
इसीलिए तो हे प्रिय दर्पण
परिवर्तन नियम संसार का॥
 --- प्रदीप बहुगुणा 'दर्पण'