कब तक चुप रहेंगे आप ?
राष्ट्र्मंडल खेलों के आयोजन में भारतीय प्रबंधकों ने भ्रष्टाचार का जो खेल खेला है,उसकी जितनी भी निंदा की जाये वो कम ही है. देश के ग़रीबों के सत्तर हजार करोड रूपयों को पानी की तरह बहाकर सारे विश्व के सामने भारत की जो तस्वीर पेश की गयी है, उससे हमें किसी खेल में मिले न मिले , किंतु भ्रष्टाचार के खेल में तो स्वर्णपदक मिल ही गया है. इसका पूर श्रेय कलमाडी एण्ड कंपनी को जाता है. टीम मैनेजर मनमोहन सिंह तथा विपक्षी दलों के सभी नेत भी बधाई के पात्र हैं ,जिन्होनें कलमाडी की टीम को मौन समर्थन देकर उनका हौसला बढ़ाया है. एम.एस.गिल और शीला दीक्षित को भी इसके लिये विशेष सम्मान दिया जाना चाहिये क्योंकि इन सभी ने देश की नाक कटवाने में कोई कसर नहीं छोडी .
वास्तव में भ्रष्टाचार हमारी रगों में इस कदर लहू की तरह बह रहा है, कि अब हम इस पर गौर ही नहीं करते. यही कारण है कि खेल के नाम पर इतना बड़ा घोटाला होने के बाद भी आम आदमी अभी तक चुप है, जबकि उसकी गाढी कमाई का पैसा झण्डाबरदारों की जेब मे पहुँच चुका है
जरा सोचिए जब देश मंहगाई, आतंकवाद और प्राकृतिक आपदाओं से जूझ रहा हो और खेल के नाम पर भारत की नाक कटवाई जा रही है. खेलगांव मे घूमते आवारा कुत्ते, खराब शौचालय ,धंसी हुई सडकें भ्रष्टाचार की खुली कहानी कह रहें हैं.
फ़िर भी हमारे हुक्मरान अगर बेशर्मी से कह रहे हैं कि सब कुछ ठीक है, तो इसका मतलब यही है कि जनता की आंखों मे धूल झोंकी जा रही है. उस पर भी तुर्रा ये कि हम सब आंख मूंदकर बैठे हैं.
आखिर कब तक चुप रहेंगे आप ?
No comments:
Post a Comment